सुनयना मेरी प्रेमिका नहीं है
sunayna meri premika nahin hai
सहर्ष सूचित करना है कि—
सुनयना इस दुनिया में मौजूद है
अपने पूरे वजूद के साथ
और सुकुल आम के दो फाँकों की तरह
उसकी आँखें क़हर ढाती रहती हैं
जब भी वह मिलती है
उसे मैं सुनयने कह कर संबोधित करता हूँ
और पूछ लेता हूँ उसके हालचाल
वह सामान्य स्त्रियों से थोड़ी भिन्न है
उसके पास चालू स्त्री-विमर्श के लिए समय नहीं है
जब तक उसके पति रहे
उसने पति से ही विमर्श किया
पति के नहीं रहने के बाद वह प्रवाह-पतित नहीं हुई
अब पति जो छोड़कर चले गए गुरुतर उत्तरदायित्व
उसे वह पूरे कर रही है प्राणपन से
वह संघर्ष कर रही है
अपने बच्चों को ऊँची जगह पर पहुँचाने के लिए
बिना कोई समझौता किए
पर बच्चों को ऊँचाई पर पहुँचाने के लिए
उसे कोई कभी रत्ती भर भी नीचे झुकते नहीं देखा
हाँ, विनम्रता से वह नीचे नज़रें झुका कर चलती है
जैसे पूरी सतर्कता से वह चावल से कंकड़ों को चुनती है
उसी सतर्कता से शब्दों को भी चुनती है
ताकि भूल से भी कभी जिह्वा पर न आए कोई कटु शब्द
उसकी शिष्टता को लोग भ्रमवश झुकाव समझ लेते हैं
अब दुनिया तो अपने ढंग से अर्थ लगाती है
भाई के साथ शहर में चल रही बहन को लोग गर्ल फ्रेंड बना देते हैं
ऐसे माहौल में जब कभी काम से लौटती नतशिर सुनयना को मैं देखता हूँ
तब मेरा मन ज़रूर कहता है
तुम पर कोई भी गर्व कर सकता है सुनयने!
एक बार पुनः सूचित कर रहा हूँ कि
मैं सुनयना से सादर प्यार करता हूँ
जैसे एक भाई अपनी बहन से
जैसे एक पिता अपनी पुत्री से
शायद उससे भी कहीं अधिक
मैं सुनयना को प्यार करता हूँ
मित्रो, यक़ीन कीजिए
सुनयना मुझसे मार्गदर्शन नहीं माँगती
वह मेरी मौन मार्गदर्शक है
वह मुझसे एकांत संभाषण नहीं करती
आप विश्वास नहीं करने के लिए स्वतंत्र हैं
लेकिन इतना मुझे अवश्य कहने दीजिए कि
सुनयना मेरी प्रेमिका नहीं है।
- रचनाकार : ललन चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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