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सुख है

sukh hai

डॉ. अजित

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सुख है

डॉ. अजित

और अधिकडॉ. अजित

    मुद्दत से मैं इस क़दर ख़ाली हूँ

    जिससे एक बार बातें

    करना करता हूँ शुरू

    फिर भूल जाता हूँ समय का बोध

    उसकी रुचि के केंद्र

    मैं उघड़ता जाता हूँ

    किसी पुराने टाट की तरह

    मेरे पास निजी दुःखों के

    इतने रोचक आख्यान हैं कि

    श्रोता उनमें तलाश लेता है

    अपने दुःखों के लिए सांत्वना

    यह मेरे दुःखों की सबसे बड़ी

    भावनात्मक उत्पादकता है

    दुःखों के आख्यान रोचक हैं

    मगर असल में दुःख हैं बहुत बोरिंग

    वे मुद्दत से मेरी शक्ल देखकर

    ऊब के शिकार हैं

    उनकी ऊब आप पूछ सकते हैं

    मेरे छिट-पुट सुखों से

    मैं इस क़दर ख़ाली हूँ कि

    बातचीत में भूल जाता हूँ

    छोटी-छोटी बात

    मगर मुझे ठीक से याद

    अपने जीवन के सारे अपमान

    मैं जब सुना रहा होता हूँ अपने दुःख

    मुझे लगता है दुःख निरपेक्ष होकर

    सुने जाते हैं

    दुःख को सुनने वाला जानता है

    दुःख का आदर करना

    कई बार सही साबित होता हूँ

    कई बार होता हूँ ग़लत

    मुद्दत से यह मेरी दबी कामना रही है

    कि मैं अपने दुःखों को कुछ तरह से

    करूँ प्रस्तुत

    कि मेरा पीड़ित होना हो जाए

    संप्रेषित

    मैंने ख़ालीपन के दौरान ही जाना

    यह ब्रह्म सत्य

    दुःखों को सुनने के बाद

    आप सिद्ध होते हैं बेहद मामूली

    जबकि

    सुखों को सुनकर मिलती है प्रेरणा

    इसलिए दुःख नहीं आते

    आपके किसी काम

    पर्याप्त संख्या के बाद भी

    लड़ता-गिरता-संभलता व्यक्ति

    बहुत देर तक नहीं बाँध पाता

    अपनत्व की तिरपाल

    उखड़ जाते हैं उसके पैर

    एक छोटे से अनौपचारिक मज़ाक़ से

    जिनसे मैंने कहे अपने अनकहे दुःख

    वे कान चिपक गए दिमाग़ से

    वे आँखें प्रार्थनारत हो गईं नींद के लिए

    वे मनुष्य जुट गए तैयारी में

    उनके हृदय पर भारी पड़ गई

    अपने दुःखों को लाँघने की जल्दबाज़ी

    मुद्दत तक दुःखों पर बात करने के बाद

    अब मुझे कोई दुःख नहीं है

    दुःख वास्तव में होने चाहिए

    बेहद निजी

    दुःख से उपजी आत्मीयता

    इतनी चलताऊ चीज़ है

    इधर आप सुना रहे हो

    अपने जीवन का

    सबसे त्रासद क़िस्सा

    उधर कोई कहे :

    क्या बात है!

    मैनें दुःखों की बातें बंद कर दीं अब

    हालाँकि ख़ाली उतना ही हूँ अभी भी

    फ़ोन पर जब कोई पूछता है हाल-चाल

    तब अनिल यादव की तरह कहता हूँ :

    सुख है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : डॉ. अजित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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