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सुधा-बाला

sudha bala

अनुवाद : चावलि सूर्यनारायण मूर्ति

शंखवरं राघवाचार्य

और अधिकशंखवरं राघवाचार्य

    हे सुधा बाला! हे सुधा बाला!

    सुधा बाला! मेरी सुधा बाला!

    आ, पुष्प पालकी स्वर्ग में रोककर

    स्वप्न मार्ग से घुँघरू छनछनाकर

    आओ सखी! हृदय अपना उड़ेलकर

    प्रेमचक्र मेरे हे, मम प्रेम चक्र!

    शुभ्र कपोलों की पांडुर शोभा फैलाते

    अधर प्रवालों की मोहक लाली छिटकाते

    हे मम मधुर प्रमीला!

    हृदंतर स्वप्न शीला!

    अहे सुधा बाला!

    पुष्प पालकी रोक स्वर्ग में

    स्वप्न के मग से हृदय में

    चौथ-चंद्रमा जूड़े में लगाऊँ

    कौन करे शंका?

    एकांत चिर मौन वाणी

    कारा छोड़ आने दो काव्य वाणी

    मेरी कविता त्रिवेणी!

    राका निशाओं के

    चमकते जलद धार्गों के

    झूले में झुलाऊँ

    प्रेम-लोरी गा सुलाऊँ

    अहे मेरी सुधा बाला!

    तेरा मन मकरंद ही

    मेरे लिए अमृत भिक्षा है

    रस की रक्षा है

    जानो तेरे प्रकाश की रेखा

    मेरे मन की सीमा है

    प्रेम की ध्रुव तारा

    फेन युत मधुर हाला

    हृदय की मधु शाला

    तू ही है हे सुम बाला!

    अब सब कुछ आनंदलीला

    हे सुधा बाला!

    हृत्पद के साथ चला तव पद

    गंधर्वो ने गाया

    अप्सराएँ नाच उठीं

    परवश होकर लोक द्रवित

    यह जगत तब लास्य की शाला

    कोमल शाद्वल जलधि तरंगों में

    लक्षित तेरी नर्तन क्रीड़ा

    हे सुधा बाला!

    इन भुवनों का मौन हृदय

    उद्घाटित कर

    लख सुधबुध खोकर

    मन से मन लिपटाकर

    रस की गंगा भरकर

    काशी बनाऊँ, काशी बनाऊँ

    मेरे अन्नपूर्णालयों में तू

    क्यों जलाती अपना सुधा ज्वाल

    अगणित नीराजन माल

    हे सुधा बाला!

    अंदर की माया करने द्रवित

    चली आओ मेरे हृदय की शंपा!

    मुझको अभय दान देकर

    मेरे मन की गहराई में जाकर

    देखो देखो हे!

    मुक्ताओं में रत्नोपम

    मेरी प्यारी!

    मानस सागर मंथन शीला!

    हे सुधा बाला!

    हृदय के उजाला!

    अंदर की माया करने द्रवित।

    चली आओ मेरे हृदय की शंपा!

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक तेलुगु कविता - प्रथम भाग (पृष्ठ 251)
    • संपादक : चावलि सूर्यनारायण मूर्ति
    • रचनाकार : शंखवरं राघवाचार्य
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1969

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