सुअर के बारे में कुछ कविताएँ
एक
एक दिन सुअर ने कहा
हम ख़ुश रहेंगे
वह सारे दिन
हँसता रहा।
एक दिन सुअर ने कहा—
हम उत्पादन बढ़ाएँगे
वह मोटा होता
चला गया।
एक दिन सुअर बोला—
बाक़ी तो ठीक है
बस हमें मेहनत करनी चाहिए
उस दिन सुअर
दिन भर होता रहा
एक दिन सुअर
सुबह से कुछ घबड़ाया हुआ था
वह कुछ बोल नहीं सका
उसके मोहल्ले में
सफ़ाई महकमे के कर्मचारियों ने
हड़ताल कर रखी थी
उन्हें पगार नहीं मिली थी
बाज़ार में राशन नहीं था
सब्ज़ी ग़ायब थी
फिर भी उन्होंने जाने क्यों
एक बड़े से चूल्हे पर
एक बड़ी-सी कड़ाही चढ़ा रखी थी।
सुअर कड़ाही से
डर गया था।
दो
एक ऊँची इमारत से
बिल्कुल तड़के
एक तंदुरुस्त सुअर निकला
और मगरमच्छ जैसी कार में
बैठ कर
शहर की ओर चला गया
शहर में जलसा था
फ़्लैश चमके
जै-जै हुई
कॉफ़ी−बिस्कुट बँटे
मालाएँ उछलीं
अगली सुबह
सुअर अख़बार में
मुस्कुरा रहा था
उसने कहा था
हम विकास कर रहे हैं
उसी रात शहर से
चीनी और मिट्टी का तेल
ग़ायब थे।
तीन
एक दिन सुअर को
ख़ूब ज़ोरों का ज़ुकाम हुआ
नाक बहने लगी
गले में घर्राहट
और खाँसी के झटके
नाक जब ज़्यादा बहे
तो उसे पोंछना तो ज़रूरी है
नाक जब ज़्यादा बहने लगी
तो सुअर ने
मेमने को बुलाया
सुअर ने कहा—
''मेमने, अपने नर्म−गर्म
रोओं से कती
ऊनी रूमाल मुझे दे
जो ख़ूब साफ़-सफ़ेद हो।''
मेमना तीन दिन पहले ही तो
मूड़ा गया था
उसके रोओं से कती जाकिट
सुअर ने पहन रखी थी
फिर मेमना इतनी जल्द
अपनी पीठ पर
और रोएँ कैसे उगाता?
तो मेमना कुछ देर सोचने लगा
कुछ देर सोचने लगा
इसलिए कुछ देर
चुप हो गया
तब तक सुअर की नाक
फिर बहने लगी
सुअर ने मेमने को मारा
उसकी खाल से नाक पोंछी
फिर एक टुकड़ा
दर्ज़ी को दिया
और अपेन सिर के लिए
नर्म-गर्म
साफ़-सफ़ेद
टोपी सिलाई
चार
सुअर ने कहा—
हिरनों ने शिकायत की है
कि जंगल में
घास की कमी है
हिरनों की तादाद
ज़्यादा है
और घास की तादाद
कम
सुअर ने कहा—
हिरन जिस तादाद में
पैदा होते हैं
घास उस तादाद में
पैदा नहीं होती
ये कौन-सा तरीक़ा है
कि हिरन
सुअरों की तरह बच्चे जनें
फिर घास कम होने की शिकायत करें
सुअर ने कहा—
चूँकि हिरनों ने
शिकायत की ही है
इसलिए अब
हिरन और घास का
अनुपात तय करना ही होगा।
हिरन कम होंगे
तो एक हिरन के हिस्से में
दिन भर ज़्यादा घास जाएगी।
पाँच
दुनिया के हर बड़े शहर में
सुअर की इमारतें थीं
वह एक विशाल यंत्र-पक्षी पर बैठ पर
उन शहरों को जाता था
दुनिया में जितने मुल्क थे
उससे कहीं अधिक बड़े शहर थे
उससे भी कहीं अधिक सुअर की इमारतें थीं
हर शहर की
हर इमारत में
सुअर की बीवियाँ थीं
इस तरह दुनिया में
जितने मुल्क थे
उससे ज़्यादा सुअर की इमारतें थीं
और उससे भी कहीं ज़्यादा
सुअर की बीवियाँ थीं
एक दिन सुअर को
हर मुल्क के हर शहर की
हर इमारत में रहने-बसने वाली
बीवी की तरफ़ से भेजे गए
एक साथ
कई टेलीग्राम मिले
सभी में सुअर के
बाप बनने की ख़बर थी
सुअर विशाल यंत्र-पक्षी पर
बैठ कर
हर शहर की हर इमारत में गया
इसके कुछ दिनों बाद
सुअर ने गोलमेज़ सम्मेलन बुलाया
जिसमें सुअर की
सारी बीवियाँ शामिल हुईं
सुअर ग़ुस्से में था
उसने गुर्राते हुए कहा—
''मेरे किसी भी बच्चे का रंग
मेरे जैसा स्याह क्यों नहीं है
उनकी खाल मेरी जैसी
खुरदुरी, कठोर और ठूँठदार क्यों नहीं है
मेरे जैसे तीखे, मज़बूत, नुकीले
खीस कहाँ हैं
उनकी आँखें ख़रगोश की तरह
फूहड़ और डरपोक क्यों
दिखाई देती हैं?
मेरी बीवियाँ बताएँ
क्या ये मेरे ही बच्चे हैं?''
बीवियों ने उसे समझाया—
''सुनो हमारे आक़ा,
किसी भी सुअर के बच्चे
शुरू में
सुअर नहीं होते
वे ख़रगोश और मेमने से भी ज़्यादा
मुलायम, नर्म और
गए-गुज़रे होते हैं
वो तो हम हैं
जो उन्हें पढ़ाते-सिखाते हैं
नसीहतें देते हैं
वैसा माहौल बनाते हैं
इस तरह
धीरे-धीरे हर रोज़
उन्हें सुअर बनाते जाते हैं।''
छह
सुअर ने दूर जंगल में
नीले झरने के पास
एक ख़ूबसूरत चिड़िया को
बाँसुरी बजाते सुना था
उसने सुन रखा था
कि हिरनों का जोड़ा
जब एकांत में होता है
तो तानपूरे के तार छेड़ता है
एक दिन सुअर ने कहा—
संगीत और कला के बिना
कोई भी सुअर
पूँछविहीन है
कला में सुअर को दक्ष होना चाहिए
सो सुअर ने
बाँसुरी मँगाई और
तानपूरा मँगाया
उसने महफ़िल जुटाई
और तानपूरे के तारों पर
खीस और खुर
घिसने लगा
तानपूरे के कई तार टूटे
कई ढीले पड़े
फिर सुअर ने
बाँसुरी में फूँक मारी
बाँसुरी और तानपूरे पर
जितने भी सुर पैदा हुए
उन्हें सुनकर
सारे दूसरे सुअर
मगन हो मूँड़ हिलाने लगे
सुअर ने कहा—
तो इस तरह कला के इतिहास में
सुअर-संगीत पैदा हुआ
एक दिन सुअर उदास था
उसने कहा—
क्यों है ऐसा कि
सुअर-संगीत जब बजता है तो
सिर्फ़ सुअर सिर हिलाते हैं
सिर्फ़ सुअर गुनगुनाते हैं
सिर्फ़ सुअर मुस्कुराते हैं
सुअर−संगीत तो
कालातीत और वर्गातीत है
यह ईश्वर है
और हर कुलीन संस्कार में
व्यापता है
जब तक दूसरे
जल-चर, थल-चर इसे नहीं अपनाते
तब तक सुअर संगीत का
साम्राज्य खंडित ही रहेगा
सुअर-संगीत
कला का चक्रवर्ती सम्राट है
सुअर ने कहा—
सत्ता को सुअर-संगीत के
प्रसार और प्रचार में
जुट जाना चाहिए
इस तरह
एक दिन
सुअर ने
हिरन को
दरबार में बुलाया
बुलाया और हिरन को उसने
दूब के एक हरे-भरे मैदान में
पूरी तरह स्वतंत्र हो
चरने और विचरने का अभय दान दिया
दूब धीरे−धीरे
हिरन की आँखों में छाने लगी
हिरन के दिमाग़ की ओर
जाने वाली तमाम नसों में
दूब की हरियाली
गश्त लगाने लगी
और तब
सुअर ने
अपना तानपूरा बजाया
हिरन के शुरू में
दूब की अथाह गंध में डूबकर
वाह-वाह की
आह-आह की
फिर धीरे-धीरे उसे
सुअर-संगीत सचमुच भाने लगा
भाने लगा
और हिरन
सुअर-संगीत के
द्रुत और विलंबित
गाने लगा
होते-होते यह हुआ
कि एक दिन
हिरन के लिए
सुअर-संगीत
दूब का एक हरा-भरा
मैदान बन गया
और होते-होते यह हुआ
कि हिरन के
ख़ूबसूरत चंचल कान
सुअर जैसे हो गए
इस तरह जब हिरन
एक दिन पूरी तरह
सुअर बन गया
तब सुअर ने उसे
सुअर-पीठ का
सर्वोच्च कला पुरस्कार दे कर
सम्मानित किया।
- पुस्तक : कवि ने कहा (पृष्ठ 23)
- रचनाकार : उदय प्रकाश
- प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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