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स्पर्श-कथा

sparsh katha

अर्पण कुमार

अर्पण कुमार

स्पर्श-कथा

अर्पण कुमार

और अधिकअर्पण कुमार

     

    एक 

    उसे नहीं है पसंद 
    स्पर्श का उतावलापन
    उसे चाहिए वह धीमी आँच 
    जिसमें वह सुध-बुध खोए 
    उष्ण हो सके
    कुछ धीरे-धीरे।

    दो 

    उसे नहीं मालूम 
    जब तक 
    हमारा असली इरादा 
    वह संवाद में शामिल है 
    वह जान जाती है जैसे ही  
    हमारे निर्दोष मुखौटे के पीछे का
    मनचला, शैतानी सच 
    वह अपने होंठों पर 
    ताला कस लेती है 

    वह ज्ञात हो उठती है कि 
    यह बातचीत सिर्फ़ 
    उसके मन बहलाव तक थी 
    कि उसके शरीर के पहाड़ों को टटोलने,  
    उसकी घाटियों में उतरने 
    और उसके मन तक पहुँचने के लिए 
    उलझाया जा रहा था उसे 

    वह मानिनी अब मान करने लगती है 
    उसे प्रेम करते हुए 
    उसके कितने रंगों से रोज़ 
    गुज़रना होता है 
    कोई राह बाहर न आए 
    उसमें ऐसे खो जाना होता है। 

    तीन 

    उसे यूँ छुओ कि 
    तुम्हारे संकोच में 
    वह अपना संकोच मिला दे 
    तुम्हारी दुष्टता में 
    थोड़ी-सी अपनी सहमति मिला दे 
    तुम कहीं से 
    आक्रमणकारी न लगो उसे 
    तुम उसकी ओर 
    धीरे-धीरे यूँ बढ़ो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अर्पण कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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