आत्मा का आवारा

aatma ka awara

शिरीष कुमार मौर्य

शिरीष कुमार मौर्य

आत्मा का आवारा

शिरीष कुमार मौर्य

और अधिकशिरीष कुमार मौर्य

    बचने का प्रसंग चलता है तो जानता हूँ

    तू बचा है मेरी आत्मा में

    तो एक आवारगी बची है मुझमें मेरी आत्मा होकर

    पहाड़ पर

    एक ढलान से ढह कर सड़क पर आई मिट्टी

    डाल दी जाती है दुबारा

    सड़क के पार दूसरी ढलान पर

    राह बनाने के लिए यह करना ज़रूरी है

    मेरी आत्मा का आवारा वही मिट्टी है

    वहीं मैं हूँ एक से दूसरा ढलान

    ढलानों का पूरा सिलसिला

    राह वही दुनिया है जिसमें बसे हम

    सरलता की कठिन कामना में

    कोशिश भर अपने होने के झोल-झाल को

    किसी के होने के कुछ नाज़ुक टाँकों से कसे

    टाँकों में प्रेम है

    जो दिखता नहीं देह में ही गल जाता है

    उसे जोड़ता है

    ज़्यादा बड़े चीरों और घावों के लिए

    प्रेम की तरह एक विचार है

    दशकों से धड़कता

    वह हर सड़न का भीतरी उपचार है

    रुग्णता के प्रतिरोध में बढ़ने वाले कणों और कोशिकाओं में

    उसी के कुछ रूपक हैं

    जीवन को बचाते-बसाते अनाचारों के सीमांतों तक

    प्रेम और विचार में सधी

    एक आवारा धुन

    गीत से वंचित बजती रहती है जब शरीर में

    तो परिचित कहते हैं

    तुम ख़ुश हो

    सेहतमंद हो आजकल

    सच है

    हर किसी की आत्मा में एक आवारा रहता है

    अफ़सोस

    कि प्रेम और विचार रहते नहीं

    हर आवारा आत्मा में

    स्रोत :
    • रचनाकार : शिरीष कुमार मौर्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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