अभावों की लिपि में बद्ध एक शोकगीत है वसंत
abhavon ki lipi mein baddh ek shokagit hai vasant
अपूर्वा श्रीवास्तव
Apurwa Srivastava
अभावों की लिपि में बद्ध एक शोकगीत है वसंत
abhavon ki lipi mein baddh ek shokagit hai vasant
Apurwa Srivastava
अपूर्वा श्रीवास्तव
और अधिकअपूर्वा श्रीवास्तव
अभावों की लिपि में बद्ध एक शोकगीत है वसंत
वह आदमी
जो आदमी होने की सभी शर्तों पर खरा उतरना चाहता है
जिसके तालू में पड़े हैं छाले, और गल चुकी है दसों उंगलियाँ
बावजूद
वह भाग रहा है, भागते हुओं में सबसे तेज़
वह विकल्पहीन!
जूझ रहा है अपनी तंगी से
प्रत्येक बसंत की तरह
इस बसंत भी
नया—एक शून्य
पुराना थोड़ा और पुराना होता हुआ
बसंत, कुछ और नहीं
प्रश्नचिन्ह है
पेट के लिए संघर्ष कर रहे आदमियों की
अनुभव पर
यह आदर्श मौसम उतर रहा है
अपनी गति से
बगानों में
राजघरानों में
कार्यालयों में
गिरजाघरों में
गीतों में
अभिजन्नों में
आहिस्ता-आहिस्ता
रीश रहे दीवारों और टपक रही छतों के भीतर कब उतरेंगे ऋतुराज—वसंत?
- रचनाकार : अपूर्वा श्रीवास्तव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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