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स्मृति-वन

smriti wan

मनीषा कुलश्रेष्ठ

और अधिकमनीषा कुलश्रेष्ठ

    स्मृतियों के वन होते तो

    सबसे घने मेरे होते

    हर छोटी बात

    हर महीन जुंबिश किसी डाल की

    लहर लहर ताल की

    कोई संकर शब्द

    कोई हुंकारा

    कोई चीख़

    कोई रंग

    रूप अरूप

    रस-परस

    गंध-मंद

    कुछ नहीं तो

    गहरी नींद के पहले के स्वप्न

    उठने से पहले का भ्रम विभ्रम

    बिल्कुल किसी चुंबन के बीच

    चिट्ठी उंगली की मरोड़

    क्या नहीं सहेजा

    उगाया

    सहज उगा

    बीजा है वहाँ

    कि हाथ को हाथ नहीं सूझता

    वर्तमान की धूप नहीं पहुँचती

    बस पसीजता ही रहता है

    वहाँ मन का मधुबन

    सर्दी उतार पर है अब,

    वसंत मध्यवयस का हुआ

    पतझड़ी पत्तियाँ अब नहीं उड़तीं

    आँखों में लगता है

    सूखी पत्तियों के जलने का धुआँ

    सधी उड़ान भरती अबाबीलें

    बैठ गई हैं

    एक गोल पत्थर पर

    करने को समीक्षा

    बीतते मौसम की

    मेरे हाथ में काग़ज़ है

    और सिर पर धूप

    एक जंगल की आग

    इन काग़ज़ों को जलाएगी

    और फिर उभरेगी

    एक पूरी जीवन गाथा

    बंदी होंगे शब्द

    अर्थ बग़ावत कर देंगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीषा कुलश्रेष्ठ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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