भय एक आकार है
चाँदनी रात में एक सूना पेड़
जो एक तंबू की तरह तना हुआ है स्त्रियों के ऊपर
बचपन से गृहस्थी तक उनका भय बड़ा होता रहता है।
उनके साथ-साथ
शरीर और आत्मा को बचाने की कला
वे शुरू से सीखती आई हैं
भीड़ में कुहनियों को अपनी ढाल बनाए
दफ़्तरों में सख़्त चेहरे लिए
वे अपने भय की रखवाली करती हैं
उनके प्रेम में भी भर दिया गया है भय
और तुम जहाँ उन्हें निर्भय देखते हो
जहाँ वे बेखटके चली आती हैं झुंड की झुंड
वहाँ भी उन्होंने भय के ही बनाए हैं हथियार
उनकी सज्जा भी एक भय है
जो कपड़ों की तह में अँधेरे की तरह बैठा है
खुले केशों की तरह रेशे-रेशे दिखता है
हँसी को भी अपना भय छिपाने की जगह बना लेती हैं स्त्रियाँ
जहाँ वे इस दुनिया से इनकार करती हैं
उनका रोना कभी किसी ने देखा-सुना नहीं
उनके नाख़ून ख़ूबसूरती से तराश दिए गए हैं
जिन पर मीठी पॉलिश चढ़ी है
कँटीली आँखों में उपेक्षा जैसा कुछ है
जिसे घायल करने के क़सीदे में बदल दिया गया है
जब वे अपना सब कुछ दे डालती हैं
और कोई उम्मीद नहीं रखतीं
तब भी उन्हें अपने भ्रम का पता नहीं होता
वे विरोध नहीं करतीं चुनौती नहीं देतीं
उन्हें याद है सिर के टुकड़ों में बिखरने की पुरानी चेतावनी
वे शायद अपने आपसे पूछती हैं
क्यों उनकी आत्मा कभी साँस नहीं लेती
चिड़ियों की तरह पंख नहीं फैलाती
उनके समुद्र में क्यों सिर्फ़ नमक है
चाँदनी रात उनके लिए भी सुंदर हो सकती थी
लेकिन उसमें अक्सर एक काला पेड़ उगा रहता है
और एक क्रूर हँसी उन्हें दूर तक गूँजती सुनाई देती है
- पुस्तक : रोशनी के रास्ते पर (पृष्ठ 19)
- रचनाकार : अनीता वर्मा
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2008
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.