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लौट आता है आसमान

laut aata hai asman

मोना गुलाटी

मोना गुलाटी

लौट आता है आसमान

मोना गुलाटी

वहीं लौट आता है आसमान

घेर कर दृष्टि को

बंद मुट्ठियों में कसमसाता हुआ

बिना थामे किसी

शब्द को

रंग से भर देता है पूरे का पूरा जिस्म

पानी बनाता हुआ :

झरने से ललकता है प्यार

थामने उँगली

खींचने को साड़ी का कोर

बलात् ही झुक आती

है कोई लता

और मुस्कराने लगता है

पीली पत्तियों में चमक लिए कोई एक

दीप्तिमान सूर्य :

फिर-फिर वहीं लौट

आता है बंद आँखों के हास्य में लिपटती कोर

में... आसमान : ...बिखरता हुआ

सुदूर जाती पाँखों में :

लौट आता

है आसमान

भीतर तक जाती सीढ़ियों को

झड़ता हुआ

चरमराता हुआ किसी तिलस्मी

खंडहर के दरवाज़े

लहराता, गरजता हुआ

मदमत्त सागर-सा

लौट आता है आसमान

नन्हीं सोती हुई पंखुड़ियों में

चाँदनी सहेजने

सफ़ेद-सफ़ेद महक में डूबने :

खिलता है आसमान;

महकता, गंधाता है

रात के उजले

अँधेरे में :

बिना कुछ कहे-सुने-गुने

स्पर्श की रौशनी में रिस जाता है आसमान

और लेता नहीं कोई भी नाम या आकार!

स्रोत :
  • पुस्तक : सोच को दृष्टि दो (पृष्ठ 81)
  • रचनाकार : मोना गुलाटी

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