बहनें बहुत उदास हों
ऊपर से उन्हें और डाँट पिला दो
तब भी उनकी उदासी पर कोई असर नहीं होता!
उदासी उतनी ही रहती है
न बढ़ती है, न घटती है।
बहनें हमारे उनींदेपन की पीली रोशनी में
खुसफुसाती रहती हैं, न जाने क्या? देर रात तक।
बहनें सुबह बड़ी फुर्ती से उठती हैं!
सूरज भी उतनी फुर्ती से नहीं निकलता।
वे छत पर से,
पिता को आते देखकर ख़ुश हो जाती हैं!
घर की गली से जुड़ी सड़क,
उनकी संदेशवाहक है।
बहनें हाथ में अपने फटे कपड़े
और छोटी सूई लिए
आसमान टाँकती रहती हैं, सिर झुकाए।
न जाने कैसे,
अपनी ढीली पोशाकों को,
चुस्त कर लेती हैं बहनें।
क्या बहनें जादूगरनी होती हैं?
- रचनाकार : संतोष अर्श
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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