बेटी मानसी के लिए
वह फुदकती, उछल-कूद करती
जब आती है पास
या जब बाहर से घर पहुँचने पर
खोलती है दरवाज़ा
तो सच कहूँ वह मुझे सृष्टि के आश्चर्यों में से
एक लगती है और मैं
सारे दिन की थकावट एवं तनावों को
फुर्र होते देखता हूँ।
और जब जेब में हाथ डाल,
निकाल लेती है अपनी मनपसंद चीज़ें
तब धरती पर सिरे से ग़ायब होती
प्रसन्नता के मूर्त रूप से रूबरू होता हूँ
तब शब्दों में संतुलित अर्थ के मायने
समझ में आने लगते हैं।
बिल्कुल नन्हीं और भोली
जैसे कि बुलबुल...
बात में मिठास, इतनी कि पूछो मत
महुआ का फूल हो जैसे
वैसे भी महुआ वसंत का सबसे
मादक और मीठा फूल होता है—
हँसना उसका खिलना है जैसे गुल दुपहरिया।
कठिन समय में सुकून का हस्तक्षेप बन
पिता को देती है नया अर्थ और जिसका होना
समूची कायनात में सुबह के नूर जैसा है।
अभी ज़िंदगी के थपेड़ों से दूर
कितना सुखद है
उसकी अपनी दुनिया का उपनिवेश
जैसे कि सृष्टि-राग का कोई समुज्ज्वल साक्ष्य
जो प्रदीप्त हो रहा है
हरिप्रसाद चौरसिया की बाँसुरी में।
- रचनाकार : अनिल त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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