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शुंतारो तानीकावा के लिए

shuntaro tanikawa ke liye

संगीता गुंदेचा

संगीता गुंदेचा

शुंतारो तानीकावा के लिए

संगीता गुंदेचा

और अधिकसंगीता गुंदेचा

    ठंड से स्तब्ध आधी रात में

    धीरे-धीरे पास आती पदचाप के साथ

    बही चली रही है

    रातरानी की गंध

    शरद ऋतु की आधी रात में

    बर्फ़ की मानिंद जमे समय पर

    मेंढक की टर्रर्र-टर्रर्र प्रहार करती है

    अचानक मेरे कमरे के छोर अनंत से जा टकराते हैं

    जब हम उसकी कविताओं का अनुवाद कर रहे थे

    वह ताजमहल के अहाते में खड़ा

    बारिश में बहती यमुना को निहार रहा था

    जापान लौटकर लिखे उसके पत्र से

    विनम्रता और हिंदुस्तानी शराब की गंध आती है

    कभी मैं उसकी कविता से

    एक पंक्ति चुराना चाहती थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संगीता गुंदेचा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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