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शुभकामनाओं की बहती नदी

shubhkamnaon ki bahti nadi

शालिनी सिंह

शालिनी सिंह

शुभकामनाओं की बहती नदी

शालिनी सिंह

और अधिकशालिनी सिंह

    शुभकामनाएँ फूलों की पीठ पर बैठकर

    प्रतिदिन फलीभूत होने के लिए

    गंतव्य को निकलती हैं

    अलस्सुबह उन्हें पढ़ते हुए

    मैं भी करुणा से भर उठती हूँ

    भीतर से एक आवाज़ आती है

    कि इतनी शुभकामनाओं के बीच

    अब बदल जाएगा समाज का चित्त

    अन्याय और क्रूरता का तिलिस्म बह जाएगा

    शुभकामनाओं की बहती नदी के तेज़ प्रवाह में

    अनुमान किया गुणा-गणित हमेशा सच नहीं होता

    और जब कोई आला अधिकारी दुनिया के

    ख़ुशरंग चेहरों का हिसाब-किताब लेकर बैठता है

    तो ख़ुशी के सूचकांक में निचले पायदान पर

    खिसक जाता है हमारा देश

    जाने कहाँ ओझल हो जाते हैं वे चेहरे

    जिनकी ललाई के दावों पर चल रहा है

    अरबों रुपयों का कारोबार

    और आँकड़ों में दर्ज हो जाती हैं वही लड़कियाँ

    जिनकी देह की सूखी नदी में

    भूख का चप्पू अनवरत चलता रहता है

    आखेटक की तरह लगने लगी है दुनिया

    कारोबारियों ने पाँव पसार लिए हैं

    यहाँ कौन बैठा है फ़ुरसत में

    कि तुम्हारी कविताओं को अंतस में उतारे

    उन्होंने छाँट दिए हैं तुम्हारे जैसे कवि

    जिनकी कविताओं में एक भी प्रशंसा का शब्द नहीं

    राजा के लिए

    जीवन की जगर-मगर में

    आँखें चौंधिया रही हैं

    शहर की सड़कें धुएँ और धूल का गोला बन गई हैं

    ऊँची-ऊँची इमारतों का क़द इतना बढ़ गया है

    कि उन्होंने आसमान ढँक लिया है

    भीतर से ख़ामोश लोग लगातार बोल रहे हैं

    गाँव में गाँव बचे हैं

    पहाड़ पर पहाड़

    जड़ जंगल ज़मीन के सूरज को

    कंक्रीट का धुआँ निगल रहा है

    बस एक स्त्री ही है

    जिसके पास उम्मीदों का एक सूरज बचा है

    जब वह उदित होगा तो

    दुनिया उजास से भर जाएगी

    स्रोत :
    • रचनाकार : शालिनी सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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