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श्रमिक हूँ मैं!

shramik hoon main!

एन.पी. सिंह

एन.पी. सिंह

श्रमिक हूँ मैं!

एन.पी. सिंह

और अधिकएन.पी. सिंह

    तमाम अभिजात्य पहचान का मूल

    स्वयं स्वाधीन अस्मिता को तड़पता,

    ‘लघु’ और ‘महामानव’ की

    वीथियों में उलझता,

    भावशून्य को सिसकता

    कौन हूँ मैं?

    उलझी बौद्धिक परिभाषाओं

    प्रेमेयों, शाब्दिक जाल को

    निरीह बन निहारता

    अपनी परिभाषा को गढ़ता

    कौन हूँ मैं?

    संसद के गलियारों की खोखली दहाड़ में

    तलाशता अपना निरर्थक अभीष्ट,

    खोई ‘निजता’ के रक्त से

    राजनीतिक पिपासा का अविराम सिंचक

    कौन हूँ मैं?

    चिंतकों के बौद्धिक एहसास की कारा में बंद,

    तंत्र के मकड़जाल में पिसता

    संगोष्ठियों में पाता नकारा सहानुभूति,

    मनोरंजक मानसिक जुगाली का प्याला,

    कौन हूँ मैं?

    व्यवस्था-परिवर्तन के फ़लसफ़ों की गूँज,

    सत्याग्रहों का मूल,

    सशक्त क्रांतियों का त्रासद शूल,

    कुकुरमुत्ते की तरह उभरते

    उदारवादी संगठनों की नपुंसक आस्था

    कौन हूँ मैं?

    हूँ दार्शनिकों का दर्शन,

    साहित्यकर्मियों की अंतर्वस्तु,

    नक्सलियों का उर्वरक हूँ,

    नितांत स्वयंसेवा हूँ स्वयंसेवियों की,

    नियोक्ता पूँजीपतियो का

    कामचोर आवारा हूँ।

    नौकरशाहों के संवेदनहीन

    कँटीले दंश को सहता

    अशक्त बेसहारा हूँ,

    बुद्धिजीवियों का बौद्धिक सहारा हूँ,

    हूँ समाजसेवियों का बेचारा,

    राजनीतियों का सहज-सुलभ चारा हूँ।

    कोरे आँसुओं के छलावे में

    ‘निज’ को भुलाता,

    परिवर्तन की तड़पन से दूर

    गीता के किसी अवतारी

    महामानव की प्रतीक्षा में डूबा,

    सर्पिल मानव की मानवतावादी

    गुंजलक में उलझा,

    वही चिरस्पाथी

    अंतहीन यातना का सहज भोक्ता

    आपका ही पीड़ित ‘लघुमानव’,

    हाँ! अदना-सा श्रमिक हूँ मैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द! कुछ कहे-अनकहे से... (पृष्ठ 30)
    • रचनाकार : एन.पी. सिंह
    • प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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