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शोक : 2 मई 2016

shok ha 2 mai 2016

तुषार धवल

तुषार धवल

शोक : 2 मई 2016

तुषार धवल

और अधिकतुषार धवल

    रह रह कर तहों से

    रिस आता है शोक

    घटाटोप में स्तब्ध धरती

    रह रह कर सिहरती है जैसे

    एक और स्तंभ ढहता है

    एक और उजाड़

    मुँह फाड़े उग आता है

    अकथ धाराएँ कंदराएँ स्मृतियाँ उगलती हैं

    एक सुई धँसी मिलती है

    अमर भंगुरता के रहस्य की नस में

    नीम बेहोशी या आधी जाग

    जहाँ से भी देखूँ

    यह वृत्त अछोर ही रहता है

    एक कुआँ आँख फाड़े अपनी

    तल से आकाश को देखता है

    एक आकाश उस कुएँ में समा जाना चाहता है

    निर्वात का यह बंजर मौन

    साँस के अँधेरे में

    देह के भोजपत्र पर

    किसी आदिम लिपि में लिखता है

    एक अक्षर अंत का

    तुम्हारी जीवनी स्मृति में भर कर

    हम उसमें पढ़ते हैं

    अन्-अंत।

    स्रोत :
    • रचनाकार : तुषार धवल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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