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सत्यव्रत रजक

और अधिकसत्यव्रत रजक

    मेरा व्यक्ति एक खिड़की ख़रीदने गया है

    दीवार खोदकर लगाएगा

    कान में कोई अभीप्सा फूलेगी लंबी वय के बाद

    बाज़ुओं के रातरानी-फूल पानी के अभाव में बुझ लजेंगे

    नाख़ुश अनाज के नाख़ून में हवा-सा घुलता कंठ

    लौट चुकने की नाज़ुक इजाज़त माँगता है

    किंतु मेरा देशकाल-मेरा व्यक्ति-मेरी देहगंध!

    थौथुल चाँदनी की निरुद्देश्यीय धूप में दमकती निर्जन छातियों पर ख़ुशगवार नहीं हुआ जा सकता

    या पुण्यात्मा की दिशा में पुनीत होने के लिए पीठ को झुकाकर अंजुरी में नहीं भरना चाहता रेत

    कचौड़ियों के साथ बुलबुलाता प्यार का गीत उदिग्न करता तो है

    लेकिन मेरा देशकाल-मेरा व्यक्ति-मेरी देहगंध मुझे इस इल्मियत से भर देते हैं कि

    मेरी घास बिना हवा का आस्वादन किए सहसिधार भुन रही है

    मैं अपने समेत आग की तटस्थ मौत में अचानक सहित आग हो जाऊँगा

    यह सब जानते हुए

    पीली अँगुलियों से रिसता चोटों का गरम घाम

    मुझे आहत नहीं करता

    मेरे पास अलगुजरे समय की कोई चिट्ठी भी नहीं है

    इस घड़ी कोई उत्प्लावित नाम

    मैं बस उन तलाशों पर हँस सकता हूँ

    जो मुझे कहीं नहीं छोड़ेंगी

    फिर भी मैं, मेरी पीठ और रिसती अंगुलियाँ

    उन्हें छूती चली जाएँगी

    मैं चिरोल के बीजों-सा

    निर्विवाद सर्वमान्य तो रहूँगा

    लेकिन मेरा व्यक्ति मुझे मेरा पसीना सुँघाएगा

    मैं अंततः मनुष्य हूँ

    चुपचाप यक़ीनन वह खिड़की लगा लूँगा

    जो खोली जाएगी इस शर्त पर

    कि पसीना सूख पाए

    और कोई ब्रह्मा किसी कमल पर बैठ दीवार की नाभि में पसर आए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सत्यव्रत रजक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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