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शरद की वह साँझ

sharad ki wo sanjh

नीरव

नीरव

शरद की वह साँझ

नीरव

और अधिकनीरव

    गाँव के बाहर वाला देव-स्थान

    जहाँ संध्या-दीप जलाने जाती थीं

    जिसके सामने कनेर का पेड़

    जो देव-स्थान की छत तक

    अपनी फूल-पत्तियों संग फैला था

    हाँ, वही

    जहाँ शरद की एक साँझ छू गया था

    तुम्हारा हाथ

    कैसे तुम्हें छूकर

    खिल गया था हृदय

    पँखुरी-पँखुरी

    बजने लगी थी श्वास

    वीणा की तरह

    धरती पर पाँव पड़ते थे प्रीति के

    उस पहले परिचय-स्पर्श के बाद

    वही छुवन

    स्पंदन

    जिसमें हृदय खिला था

    और वही

    सँझौती वेला का

    तुम्हारा ललछौंह चेहरा

    जाने क्यों याद रहा है

    इतनी गहन रात में!

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीरव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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