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शब्द-स्पर्श

shabd sparsh

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

दीपक मिश्र

दीपक मिश्र

शब्द-स्पर्श

दीपक मिश्र

और अधिकदीपक मिश्र

    शेष कातिक के भिनसारे की

    नक्षत्रस्नात स्वप्नभोगी

    नींबू रंगी पूड़े-भर दूब की तरह,

    शेष फागुन की रात के अंतिम पहर की

    रति-धौत कामुक

    बद्धांजलि हवा की तरह,

    शेष पूस के पवित्र लग रही

    सुबह की ओस से भीगी माटी पर

    टिकी पड़ी स्नेहसिक्त

    धान के गट्ठे पर लोट-पोट

    हो रही पूस की आलसी किरण की तरह,

    विध्वंस सुहागरात के कमरे के

    ठीक बीच चट्टान पर

    इधर-उधर बिखरी मुट्ठी-भर हल्दी लगी कौड़ियों की तरह,

    कब से चालीस पार हुई

    हालाँकि प्रथम यौवन के अभ्यासवश

    काजल व्यवहार करने वाली

    मृत्युपर्यंत ख़ुद को प्रेमिका की ढुल-ढुल भूमिका में

    सजाकर रखने वाली नारी के

    आँख-भर काजल की तरह;

    जलते आकाश में

    एक टुकड़े परिचित बादल की तरह;

    करुण कोहरे में

    डूब रहे निरीह आम के पेड़ों पर

    गुच्छे-भर ताज़े बादल की तरह

    दिन-ब-दिन अनाहार में

    सीझी हुई माँ की

    रक्तहीन आँखों के बूँद-बूँद आँसू की तरह;

    चौराहे पर नित्य-प्रति

    पैर पसार खड़े ज़मींदार के

    मुट्ठी-भर निरर्थक वाक्यांशों की तरह;

    ताज़ी मछलियों का बोझा सामने रख

    मूँछ वाले मछुआरे के बेटे की

    उद्धत अँगुलियों के बीच से

    चूते मछलीयाँध पानी की

    छोटी-बड़ी बुदबुदाहट की तरह;

    विभिन्न प्रार्थनाओं के कातर ह्दय

    भक्त की निस्वार्थ चेतना में घुटन भरे अनुभव की तरह;

    मृत्यु के चंगुल से क्षत-विक्षत

    महामहिम नेताओं की घिघियाहट की तरह;

    हाल ही में सधवा हुई ललाट पर

    चमचमाते रक्त से भी अधिक गाढ़े

    बिंदिया-भर सिंदूर की तरह;

    काले को सफ़ेद और रात को दिन

    करने वाले धोखेबाज़ों की

    सूक्ष्म धीमी हँसी की तरह;

    चाँदनी रात में अशोक के फूलों के झूले में

    नागकेशर का रस-पान करके

    झूम रहे भाग्यवादी महंत की

    रहस्य चित्रित लोलुप दृष्टि की

    आशंका चिह्नित झुण्ड-भर छाया की तरह,

    जोड़े को धूप में हाथ-पैर हिला-हिलाकर

    ख़ुद-ब-ख़ुद खेल रहे

    दो महीने के शिशु की नन्ही-नन्ही पलकों की तरह

    उठा लिए

    चुन-चुनकर कुछ शब्द

    मेरी वयस्क अंजलि लबालब भर जाने तक

    तीनों लोक महक उठे शब्दों की मुरली ध्वनि से

    तीनों लोक चौंक उठे शब्दों की तेज़ गति से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविताएँ 1984 (पृष्ठ 45)
    • संपादक : बालस्वरूप राही
    • रचनाकार : दीपक मिश्र
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1984

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