रिश्तों में दरकन
हो ही जाती है अक्सर
बिना समझे मुँह से
निकले हुए शब्दों से
बारहाँ कोशिश की उसने
कि खोलूँ मैं भी अपना मुँह
और भौंक पड़ूँ गली के
कुत्तों की तरह
पर मेरी चुप्पी उसकी
आदमियत के लिए चुनौती बन गई
वह जितना चिल्लाता
उतना खीझता
और मैं?
चुपचाप उसके खीझने को
देखता और फिर मुस्कुराता
मेरी चुप्पी उसके शब्दों के
व्याकरण को बदल दे रहे थे
वह ज़हीन से जघन्य हो गया
नहीं समझ पाया वह
इतनी छोटी-सी बात :
शब्द ही ब्रह्म है
शब्द ही मर्म है
और सबसे विशेष
शब्द ही रह जाने हैं शेष।
- पुस्तक : मै, तुम और ईश्वर (पृष्ठ 18)
- रचनाकार : राहुल द्विवेदी
- प्रकाशन : आपस पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स
- संस्करण : 2022
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