सारी दुनिया इस ममता में
sari duniya is mamta mein
टिटहरी बैठी है अंडों पर
बिल्ली पिल्ले को पकड़कर
गर्दन को धीमे से थामकर
सुरक्षित जगह लिए जा रही है।
बिजड़े का युगल महीन क़सीदाकारी से
ओट के लिए बना रहा है घोंसला
कोयल, कौओं के बेगाने घोंसलों में भी
अंडे टिका रही है
माँ बच्चे को स्तनपान करवा रही है
लोरी देकर सुला रही है
धरती हम सभी को
अपने पालने में डालकर
झूला झुला रही है
रात को सुला रही है
दिन में जगा रही है
ममत्वमयी लग रही है
पुरी दुनिया।
- पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 524)
- संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2014
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