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सराय के मज़दूर

saray ke mazdur

नीलोत्पल

नीलोत्पल

सराय के मज़दूर

नीलोत्पल

और अधिकनीलोत्पल

    यहाँ मौजूद है उनके लिए

    फैलाने को जगह भर उनके पाँव

    नंगे बदन ओढ़ने को

    एक दूसरे का ताप

    समेटने के लिए

    अपनी-अपनी हारे

    यहीं अपनी चीज़ों में उलझे हुए

    समय के भीतर पनप रही चुप्पी के साथ

    तय करते हैं रोटी और जीने का फ़ासला

    भट्टी में तप रही छीनियों की तरह

    यहीं तराशे हैं उन्होंने अपने हाथ

    यहीं तय हुई हैं उनके भूख की इयत्ता

    रात की ख़ानाबदोश आरामगाह के बाद

    यहीं तलाशें हैं उन्होंने

    अपने खोए बीज

    यहीं पका है उनका दुख

    यहीं गाया है उन्होंने अकेलेपन का गीत

    यहीं शुरुआत है

    उनके घर लौटने की।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीलोत्पल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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