सपनों के बारे में कुछ सूक्तियाँ
sapnon ke bare mein kuch suktiyan
एक
कुछ सपने कभी पूरे नहीं होते
आते हैं वे हमारी नींद में
पूरे न होने की अपनी नियति से बँधे
इस सच्चाई को हम जीवन भर नहीं जान पाते
नहीं जान पाते अपनी असमर्थता,
अपनी विवशताएँ, अपना निष्फल दुस्साहस
सपने जानते हैं इसे
आते हैं इसीलिए वे
ठीक हमारे जग पड़ने से पहले
दो
कुछ सपने दूसरों के होते हैं
जिन्हें पूरा करने के फेर में
हम देख नहीं पाते अपने सपने
तीन
सपने अक्सर जन्म देते हैं
दूसरे सपनों को
इसी तरह वे रखते हैं
अपनी गिरफ़्त में आदमी को
चार
कुछ सपने मालिक होते हैं
कुछ होते हैं, ग़ुलाम
एक सपना पूरा करता है
दूसरे सपने की ख़्वाहिशें
दूसरा सपना तीसरे की
इसी तरह क़ायम होता है
सपनों का साम्राज्य
पाँच
कुछ सपने पीछा करते हैं हमारा
शिकारियों की तरह
बना लेते हैं हमें पालतू
अगर पकड़ पाते हैं हमें
छह
कुछ सपने याद नहीं आते
देखे जाने के बाद
वही होते हैं सबसे ज़रूरी
सात
सपने बेहद अराजक और निरंकुश होते हैं
तरह-तरह के छुपे हुए दरवाज़ों, ढँके गलियारों,
गुप्त द्वारों, भेद-भरी गलियों, रहस्यमय खाइयों,
तिलिस्मी फंदों, गोरखधंधों और पेचीदा प्रकोष्ठों से भरे
वे नहीं पूरा करने देते आपको अपनी दबाई गयी इच्छाएँ
ला खड़े करते हैं अबूझ अवरोध,
बदल देते हैं पटकथा की दिशा
अधबीच पहुँच कर कई बार भरते हुए आकुलता प्राणों में
नींद की निरापदता में आतंक की सृष्टि करते हुए
आठ
सपनों को समझने का दावा करने वाले
छले जाते हैं
सबसे पहले
सपनों से
कोशिश बेकार है सपनों से
भविष्य बाँचने की
इंसान का नसीबा तय हो चुका है
सपनों से बाहर
नौ
अचानक झटके से टूटती है नींद
जैसे टूटता है काँच का गिलास
फ़र्श पर गिर कर
उठ कर बैठते-बैठते भी
गूँज बाक़ी होती है चीख़ की कानों में
किस का चीत्कार है यह
किस आकुल अंतर का, मारे जा रहे
निरपराध का, चला आया है जो
इस तरह स्वप्न के बाहर
एक और भी अजीबो-ग़रीब जगत में
जहाँ गूँजता है अहर्निश
उससे भी तीखा हाहाकार
फ़र्क़ करना मुश्किल है अब
स्वप्न और वास्तविकता में
काया और माया में
आलोक और अंधकार में
हुलास और हुंकार में
- पुस्तक : कुल जमा-3 (पृष्ठ 242)
- रचनाकार : नीलाभ
- प्रकाशन : शब्द प्रकाशन
- संस्करण : 2012
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.