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मधुर-भाषण

madhur bhashan

अनुवाद : एम. जी. वेंकटकृष्णन

तिरुवल्लुवर

तिरुवल्लुवर

मधुर-भाषण

तिरुवल्लुवर

और अधिकतिरुवल्लुवर

    91

    जो मुँह से तत्वज्ञ के, हो कर निर्गत शब्द।

    प्रेम-सिक्त निष्कपट हैं, मधुर वचन वे शब्द॥

    92

    मन प्रसन्न हो कर सही, करने से भी दान।

    मुख प्रसन्न भाषी मधुर, होना उत्तम मान॥

    93

    ले कर मुख में सौम्यता, देखा भर प्रिय भाव।

    बिला हृद्‍ गत मृदु वचन, यही धर्म का भाव॥

    94

    दुख-वर्धक दारिद्र्य भी, छोड़ जायगा साथ।

    सुख-वर्धक प्रिय वचन यदि, बोले सब के साथ॥

    95

    मृदुभाषी होना तथा, नम्र-भाव से युक्त।

    सच्चे भूषण मनुज के, अन्य नहीं है उक्त॥

    96

    होगा ह्रास अधर्म का, सुधर्म का उत्थान।

    चुन चुन कर यदि शुभ वचन, कहे मधुरता-सान॥

    97

    मधुर शब्द संस्कारयुत, पर को कर वरदान।

    वक्ता को नय-नीति दे, करता पुण्य प्रदान॥

    98

    ओछापन से रहित जो, मीठा वचन प्रयोग।

    लोक तथा परलोक में, देता है सुख-भोग॥

    99

    मधुर वचन का मधुर फल, जो भोगे ख़ुद आप।

    कटुक वचन फिर क्यों कहे, जो देता संताप॥

    100

    रहते सुमधुर वचन के, कटु कहने की बान।

    यों ही पक्का छोड़ फल, कच्चा ग्रहण समान॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : तिरुक्कुरल : भाग 1 - धर्म-कांड
    • रचनाकार : तिरुवल्लुवर

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