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सहेजने की आनुवंशिकता में

sahejne ki anuvanshikta mein

सीमा सिंह

सीमा सिंह

सहेजने की आनुवंशिकता में

सीमा सिंह

और अधिकसीमा सिंह

    कहीं पहुँचने की निरर्थकता में

    हम हमेशा स्वयं को चलते हुए पाते हैं

    जानते हुए कि चलना एक भ्रम है

    और कहीं पहुँचना यथार्थ

    दिशाओं के ज्ञान से अनभिज्ञ

    कर रहें हैं पीछा,सूरज उगने वाली दिशा का

    प्रकाश से हमारा संबंध भले ही सदियों पुराना हो

    पर अपनी ही परछाई से हार जाना नियति

    हम हाँक दी गई बकरियों की तरह झुँड में

    चर रहे समय पर गिरी पत्तियों को

    यह जानते हुए कि हवा उड़ा ले जाएगी

    किसी रोज़ अनिश्चित दिशा में, जहाँ

    हम ख़ुद को पाएँगे निरीह अकेला

    जिनके हिस्से नहीं आती कोई निश्चित जगहें

    वे यूँ ही भटकती रहती हैं तमाम उम्र

    और एक रोज़ अंतिम आँसू की तरह गिरकर

    मिट्टी हो जाती हैं

    हम ढूँढते रहते हैं आदिम रास्ते

    और चाही गई मंज़िलों के पते,

    बारिश में भीगने की चाह और

    जंगल के उस पार ख़ुद में डूबी एक नदी

    टेढ़े-मेढ़े रास्तों को पार करने की इच्छा

    किसी बच्चे के ज़िद जैसी

    जो रोता है लगातार चाही गई वस्तु के लिए

    हमें जीवन की तलाश में भटकने दिया जाए

    निश्चित है कि कोई कोई द्वीप

    एक दिन हमसे ज़रूर टकराएगा

    और तुम्हारा आसमान भरभरा के ढह जाएगा

    हमारे खुले बालों पर

    हम सफ़ेद फूल टाँक आसमान को सहेज लेंगी

    जैसे सहेजती हैं जूड़ों में अपने बिखरे बाल!

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    • रचनाकार : सीमा सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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