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साधारण आदमी

sadharan adami

समृद्धि मनचंदा

समृद्धि मनचंदा

साधारण आदमी

समृद्धि मनचंदा

और अधिकसमृद्धि मनचंदा

    साधारण आदमी

    चल पड़ता है

    कहीं से… कहीं के लिए भी

    इतना चलता है कि

    उसके चलने से

    सपाट हो जाती है धरती

    और जब भी चलता है

    तब जहाँ से चलता है

    लौटकर वहीं पहुँचता है

    वह समतल सपने देखते हुए

    परिक्रमा करता है

    एक गोल रोटी की

    परिक्रमा करता है

    अपनी ही कील पर

    अपने ही दुःख की

    एक साधारण आदमी

    स्वभावतः चल पड़ता है

    एक दुःख से अगले की ओर

    चलता है

    डामर की सड़क पर

    डामर के पाँव लिए

    और जब भी चलता है

    उससे थोड़ा गाँव छूटता है

    बीत जाता है उस पर थोड़ा शहर

    वह नींद के

    सपने देखते-देखते

    भूल जाता है सोना

    साधारण आदमी बहुत चलता है

    कभी दुःख के पीछे

    कभी दुःख के आगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : समृद्धि मनचंदा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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