सच है लोग, समय से लड़ते-लड़ते हार गए
sach hai log, samay se laDte laDte haar gaye
कृष्ण मुरारी पहारिया
Krishna Murari Pahariya
सच है लोग, समय से लड़ते-लड़ते हार गए
sach hai log, samay se laDte laDte haar gaye
Krishna Murari Pahariya
कृष्ण मुरारी पहारिया
और अधिककृष्ण मुरारी पहारिया
सच है लोग, समय से लड़ते-लड़ते हार गए
अँगुली पर गिनने लायक़ हैं जो उस पार गए
उस तट कविता के मंदिर में तुलसी-सूर-निराला
बैठे अब भी पान कर रहे हैं छंदों की हाला
तट की देवी अब किसकी अगवानी को है आकुल
लिए हाथ में चुने हुए बनफूलों की जय-माला
लगता है मंदिर की देहरी तक केदार गए
हम भी अब कपड़े उतारकर, पानी में धँस जाएँ
भीतर जो विष या अमृत है, खुले कंठ से गाएँ
अपनी बाँहों तैरे लड़कर, सभी मगरमच्छों से
फिर चाहे इस कालनदी में डूबे या उतराएँ
देखे जो किशोर वय में, सपने सुकुमार गए
- पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 72)
- रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
- प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
- संस्करण : 1998
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