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सब के सब असाधारण रूप से शांत हैं

sab ke sab asadharan roop se shant hain

अवधेश कुमार

अवधेश कुमार

सब के सब असाधारण रूप से शांत हैं

अवधेश कुमार

और अधिकअवधेश कुमार

    एक जटिल कॉमेडी के विकट दुखांत में

    यानी पटाक्षेप के बाद

    शुरू करते हुए असली नाटक

    सब के सब असाधारण रूप से शांत है :

    द्रुत से फिर विलंबित हो गई है

    लय पार्श्व-संगीत की

    क्लाइमेक्स से

    नीचे उतर रही है घटना;

    घुटनों

    के

    बल

    एंटीक्लाइमेक्स में

    नाटक का आरंभ

    फिर दर्शकों के बीच से होगा; फिर

    ढूँढ़ा जाएगा एक विदूषक

    जो इस भीड़ को जनता कह कर

    संबोधित करेगा; और सरलता

    से अधिनायक बन जाएगा।

    फिर असाधारण रूप से शांत

    सब के सब

    साधारण रूप से चीख़ने लगेंगे।

    घटना चढ़ने लगेगी क्लाइमेक्स पर

    पार्श्वसंगीत की लय

    विलंबित से द्रुत हो जाएगी,

    पटाक्षेप से पूर्व ही होगा असली

    नाटक!

    यानी

    एक जटिल त्रासदी में

    अंतर्निहित होगी

    एक शाश्वत कॉमेडी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : निषेध के बाद (पृष्ठ 35)
    • संपादक : दिविक रमेश
    • रचनाकार : अवधेश कुमार
    • प्रकाशन : विक्रांत प्रेस
    • संस्करण : 1981

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