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रूठती नहीं हैं

ruthti nahin hain

सोनी पांडेय

सोनी पांडेय

रूठती नहीं हैं

सोनी पांडेय

और अधिकसोनी पांडेय

    उलाहनों, शिकायतों, गालियों को

    पति से मिले तमग़े की तरह सहेजती हैं औरतें

    रूठती नहीं हैं...

    हर बार सुनती हैं कि नाक हो तो विष्ठा खाएँ

    और चुपचाप अपनी कोख में उन्हें सेती, जनती, पालती, पोसती

    तैयार करती हैं जतन से

    और एक दिन सुनती हैं बेटों से कि चुप रहो!

    समझ कितनी है आपको?

    बाहर की दुनिया कितनी देखी है?

    आप क्या जानें दुनिया का हाल?

    गाल बजाना अनुभव का झुनझुना हो जैसे

    बजते हुए बेटों को निहारती हैं औरतें

    रूठती नहीं हैं...

    वह प्रेम करते हुए पुरुष की आँखों में खोजती हैं प्रेम

    प्रणय आवेग के उतरते

    बग़ल में लेटे उस आदमी को देखती हैं

    जो सुबह स्वामी होगा और वह दासी

    हर हाल में झूकी औरतें

    अपनी पीठ की उस हड्डी को सीधा करना चाहती हैं जतन से

    पूछती हैं अपने किसी गीत में सवाल कि

    “इ वेदना हमें ना सहाए, पिया के लाल कइसे कहइहें?”

    उनके इन अनुत्तरित प्रश्नों को

    सदियों से अपने पैरों के नीचे दबाए

    वे मुस्कुराकर निकल जाते हैं

    बार-बार दुहराते हैं कि यह घर तुम्हारे बाप का नहीं

    आत्मा पर लगे इस अग्निबाण को सहतीं

    अपना सब कुछ हार कर जीत जाती हैं औरतें

    तुम्हे बार-बार जन्म देकर

    रूठती नहीं हैं!

    स्रोत :
    • रचनाकार : सोनी पांडेय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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