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रतजगा

ratjaga

हरीशचंद्र पांडे

और अधिकहरीशचंद्र पांडे

    इस घर से वधू को लेने गई है बारात

    इस घर में रतजगा है आज

    इस समय जब वहाँ बाराती थिरक-थिरक कर साक्ष्य बन रहे होंगे

    जीवन के एक मोड़ का

    यहाँ औरतें गाकर नाचकर स्वाँग रच-रचकर

    लंबी रात के अंतराल को पाट रही हैं

    वहाँ जब पढ़े जा रहे हैं झंझावतों में भई साथ रहने के मंत्र

    और सात जन्मों के साथ की आकांक्षा की जा रही है

    यहाँ जीवन भर साथ चलते-चलते थकी औरतें

    मर्दों का स्वाँग रच रही हैं

    इनके पास विषय ही विषय हैं

    स्वाँग ही स्वाँग

    प्रताड़नाएँ, जिन्होंने इनका जीना हलकान कर रखा था

    अभी प्रहसनों में ढल रही हैं

    डंडे कोमल-कोमल प्रतीकों में बदल रहे हैं

    वर्जनाएँ अधिकारों में ढल रहीं हैं

    ये मर्द बनकर प्रेम कर रही हैं बुरी तरह

    अपनी औरत को बुरी तरह फटकार रही हैं

    जूतों की नोकों को चमका रही हैं बार-बार

    मूँछों में ताव दे रही हैं

    वह टुकड़ा

    जो द्वीप है इनके लिए

    उसे महाद्वीप बना रही हैं

    अपने वास्तविक संसार में लौटने के पहले

    कल सुबह एक और औरत के आने से पहले...

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरीशचंद्र पांडे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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