रंजन भैया तुमसे मिलकर
ranjan bhaiya tumse milkar
कवि राकेश रंजन के प्रति
रंजन भैया तुमसे मिलकर
मिला बहुत कुछ जाने अनजाने में सब कुछ
जीवन का उल्लास मिला है
कविताई का सार मिला है
एक नई कविता को फिर से यह कोमल एहसास मिला है
रंजन भैया गीली माटी
रंजन भैया पक्का लोहा
उस किसान के आँगन जैसा
है, विस्तार पा चुका जिसका
पसरा है भूगोल जहाँ तक
भूखा है इतिहास उसी का
रंजन भैया की छाती में भरा हुआ है एक तिहाई
इस समुद्र में प्रेम भरा है
इसमें छुपी हुई सच्चाई
इसमें गगरी कौन डुबोए
पनिहारिन इस तट पर आओ
रंजन भैया तुमसे मिलकर प्यास बुझेगी नहीं कभी अब
सावन प्यासा
भादों प्यासा
प्यासा है जीवन मानुष का
सुनो माधुरी भाभी तुम भी
प्यासा है यह बहुत भतीजा
तुमसे मिलकर प्यार मिला है
तुमसे यह अभिमान मिला है
रंजन भैया मिलते रहना
कविता में तुम गुनते रहना
भनते रहना जीवन उनका
बुनते रहना सपने उनके
जिन पर यह संसार टिका है।
- पुस्तक : सावन सुआ उपास (पृष्ठ 41)
- रचनाकार : शैलेंद्र कुमार शुक्ल
- प्रकाशन : सर्वभाषा प्रकाशन
- संस्करण : 2023
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