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सहारा

sahara

अनुवाद : राजेंद्र देथा

पारस अरोड़ा

और अधिकपारस अरोड़ा

    मेरे साथ इस अथाह समुद्र में

    भुजबल के सहारे तैरने वाले मेरे मित्रो!

    हमारे साथ कई लोग एक साथ तैर रहे हैं

    तुम्बियों, ट्यूबों, डूंगियों और

    कई अन्य चीज़ों के सहारे,

    नहीं है इनको अपनी भुजाओं पर भरोसा।

    इनको देखकर मत डुला देना अपने अंतस को

    स्वयं की दशा पर मत दर्शाना दुख-चिंता,

    मत करना थक कर समझौता।

    ये निर्बल पराश्रित लोग

    सहारे के नाम पर बाँध लेते हैं

    नियमों और शर्तों की डोरियों से

    और वे बँधे हुए बैल बने लोग

    इनके काम आते हैं बोझा ढोने बाबत।

    आपके साथ तैरने वाला मैं जानता हूँ कि

    हमारी देह पर रिसते कई घाव और

    समुद्र का लवणयुक्त पानी दाह उपजा रहा।

    किनारे दृश्य-सीमा से बाहर हैं।

    हो सकता है तैरते-तैरते

    समंदर की लहरों को चीरते हुए भी

    हम नहीं पहुँच सकें किनारे तक

    और समुद्र की कोई एक लहर

    तोड़ डाले अपना देह-बल

    और हम डूब जाएँ, मारे जाएँ।

    लेकिन उस मरने से यह

    ‘मारा जाना’ सुंदर है।

    समुद्र की लहरें तोड़ सकती हैं देह-बल

    लेकिन आत्मबल तोड़ने की शक्ति नहीं हैं उनमें,

    पूरे समुद्र में भी नहीं।

    यदि हम पहुँच गए किनारे तो

    कई मर जाएँगे जीवित होते हुए भी

    और यदि नहीं पहुँच सके तो पहुँचने वाले

    शर्म से मर जाएँगे।

    धारण कर लो,

    धारण कर लो मेरे मित्रो!

    कि—

    ‘मारे गए कहलाना क़बूल है

    लेकिन ‘मर गए’ कहलाना क़बूल नहीं।’

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : पारस अरोड़ा
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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