टेमली पू के लिए
उसने राग रुदन छेड़ रखा है
यह दिन या रात के
किसी भी पहर गाया जाने वाला राग है—
बचपन के थाट का है
इसमें हँसी ठठ्ठे का हर एक स्वर वर्जित है
कुछ चीज़ों के ‘ख़याल’ सँजोए थे उसने
जो हमने विलंबित कर दिए थे
अचानक द्रुत हो उठे हैं
उसने बिगड़कर, झगड़कर
ज़मीन पर लेटकर, मचलकर
कार्यक्रम का आग़ाज़ किया है
उसके आलापों में तीव्र विलाप हैं
कोमल स्वर सारे निषिद्ध हैं
आँसू वादी और सम्वादी स्वर
तानपूरे पर संगत कर रही है
उसकी ज़िद
जो उसकी आड़ मे छुपकर बैठी है
और टुंग-टुंग-टुंग-टुंग कर
उसके कान भरे जा रही है लगातार
तबले पर संगति है उसके ग़ुस्से की
जो हाथ-पाँव पटक-पटककर
अपने ही क़ायदे और परण बजा रहा है
हारमोनियम पर है
उसकी फेंका-फेंकी
कुटती, पिटती, टकराती चीज़ें
अपनी टंकारों से
उसे स्वरों से भटकने नहीं देती
वह राग में बनी रहती है
वह तानें लेते हुए ताने मार रही है
वह खरज पर उतरे तो धरती फट पड़े
और तार-सप्तक के आख़िरी स्वर तक पहुँचे तो आसमान
उसकी घरानेदार गायकी की यह ख़ासियत है
पता है?
उसके गालों पर एक टीका था
जिस पर एक घोंसला था
जिसमें ‘हँसी’ नाम की चिड़िया अंडे दिया करती थी
बाढ़ में बह गया है
इतना डूबकर गाया है आज राग उसने
हम सब जो उसके श्रोता हैं
विस्मित हैं उसके रियाज़ पर
हम तालियाँ फिर भी नहीं बजाते
“वाह! उस्ताद वाह!!” फिर भी नहीं कहते।
उसका रोना सुन
हमारा कलेजा जो भीतर से ख़ून-ख़ून हुआ है
वही उसकी सच्ची दाद है।
उम्मीद है वह जल्द ही समेटेगी सारा विस्तार
और लौट आएगी एक तिहाई लेकर
उस राग से बाहर
हमारी बाँहों में
जहाँ उसकी फ़रमाइशी चीज़ें
इनामों-इक़रामों की तरह मिलने वाली हैं उसे
...और वे सब चीज़ें भी चाहती हैं
कि इस संगीत-सभा का समाहार
एक तराने से हो
‘हँसी’ जिसका राग हो
रोने का हर एक स्वर वर्जित हो।
- रचनाकार : हेमंत देवलेकर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.