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राग चारुकेशी

rag charukeshi

नीरव

नीरव

राग चारुकेशी

नीरव

और अधिकनीरव

    नदी का नीरव-तट; संध्या-काल

    तुम गुनगुना रही थीं—

    छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए।

    लता मंगेशकर : मैंने कहा।

    स्मित उभरी तुम्हारी और

    कहा तुमने

    हुम्म! लता मंगेशकर, राग चारुकेशी!

    ठिठोली कर दी

    तुम भी न!

    शास्त्र से बाहर कभी नहीं आओगी

    देखो यह नदी का निर्जन तट

    शांत निर्मल धारा

    कभी नहीं कहतीं यह मेरा राग

    यह मेरी लय

    कभी बहती मदमस्त

    नवयौवना की तरह

    कभी शांत

    संन्यासी की तरह

    विनोद से चिढ़कर मेरे सीने लग जाने की तुम्हारी आदत!

    राग से निश्चित ही अपरिचित

    किंतु

    अनुराग मेरी समझ में आता है

    भींच लिया कसकर

    और

    पानी में चाँद दिखाकर कहा

    वह देखो नदी गीत गा रही है

    बताओ

    कौन-सा राग?

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीरव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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