क़रारनामा
qararnama
जन्म पाया मानव का
जीवन है परमधन।
किंतु वह है एक बार का
उसे मिला हुआ वर।
बिल के कीड़ों-सा
जन्म ले वहीं बढ़ सड़ कर,
समुदाय में न जाने अपना स्थान
अस्तित्व का प्रयोजन
कल्पना से भी न जान
अपने इतिहास को मिटाते हुए
अपने ही रास्ते पर चले जाने वाला मानव
अब जन्मेगा नहीं;
भँवर भ्रमण में पड़ चक्कर काटेगा नहीं!
कभी अज्ञात युग में
तेरे ऊपर डाले चादर ही
बन दुष्परिणाम, दूभर होने पर भी
हटाने की शक्ति से रहित
मृत्यु पीड़ा कलप-कलप कर
बिलबिलाने के लिए
जन्म लिया है क्या? हे मानव!
कायरता-जनित लज्जाओं का बन आगार
दग्ध पटल हो,
अतीत की मर्यादाएँ
लटकती जालें
भूत बन तेरे ही शिकार के लिए
पीछे पड़ भगा रहे हैं तो
तू कायरता की दवा खाकर रह जाएगा?
अथवा
वीर बन विप्लव-नाद करेगा? हे नर!
है मात्र एक जीवन
मानव-सा वीर-सा
जीओ! हे नर!
इतिहास तेरे लिए
प्रसव वेदना सहन कर रहा है!
भविष्य तेरे लिए
इंतज़ार कर रहा है
अर्पण कर अपना रक्त, हे नर!
तेरा त्याग वृथा न होगा!
तेरा त्याग वृथा न होगा!
बिन प्रयोजन का
भार वहन करता-करता
ढीला पड़ा
दारिद्र्य में जलता जीवन!
जंज़ीर में बँधे कुत्ते का जीवन!
बस-बस, हे नर! तू जी नहीं सकता।
है एक जीवन मात्र ही,
भूत को एक बार विस्मृत कर
शूर वन शृंखलाओं का कर छेदन!
प्रभवित होने वाली शांति जगति
सुवर्ण किरण तेरी और
विश्वास मान, तेरे छोटे भाइयों की,
हे मानव!...आरती उतारेगी।
आने वाली तेरी संतान
दारिद्र्य में लूट में,
नहीं जिएगी, नहीं जी सकेगी।
कोई
आशाओं के सोपानों का कर निर्माण
अँगड़ाइयों के बाँध पुल
स्वप्नों के दर्शन में स्वर्ण-लोक के
सुखों की करता याद
आगे जनम लेने वाला
नहीं जिएगा, नहीं जी सकेगा।
स्वछंद जीवन पाने के लिए
विद्रोह समर में
क्षतगात्र बन गिरे, हे मानव!
घायल सिंह-सा
गर्जन भरने वाली तेरी कंठ-ध्वनि
है आने वाले स्वर्ण युग की जय-भेरी!
तेरा जीवन ही एक पथ सुचारी!
नव समाज व्यवस्था के लिए
बीजाक्षर नामकरण महोत्सव!
तेरी गल-सीमाएँ
देशभक्ति की परिभाषाएँ हो
रह जाएँगी, हमेशा-हमेशा के लिए!
जीवन का बलिदान किए है मानव!
तेरे गीत ही इस लोक की
अंतिम घड़ियों तक
प्रतिध्वनित होंगे।
रक्त का, हे नर ! कर अर्पण
तेरा त्याग वृथा न होगा
तेरा त्याग वृचा न होगा।
- पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 76)
- संपादक : माधवराव
- रचनाकार : सोमसुंदर
- प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
- संस्करण : 1985
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