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पुष्प बनकर आऊँगा

pushp bankar aunga

अनुवाद : रणधीर उपाध्याय

सुंदरम

सुंदरम

पुष्प बनकर आऊँगा

सुंदरम

और अधिकसुंदरम

    मैं पुष्प बनकर आऊँगा तेरे पास!

    तू नन्हा सा बालक खेलता होगा तरु के नीचे,

    मैं टप-से तेरे सिर पर टपकूँगा,

    तेरी आँखों का भोला अचंभा पीऊँगा,

    तेरे हाथों का छोटा-सा खिलौना बनकर खेलता रहूँगा।

    भले ही तू मेरी पंखुड़ियाँ तोड़-तोड़कर उड़ा दे आकाश में।

    मैं पुष्प बनकर आऊँगा तेरे पास।

    तू छोटी-सी बालिका होगी कौमार्य की आशाओं से भरी,

    मैं तेरे बालों में लाडली वेणी बनकर झूलूँगा—

    तेरे कान पर झूलते हुए अठखेलियाँ करूँगा तेरे कपोलों से;

    या गजरा बनकर तेरे हाथ पर सुहाऊँगा और सबके मन को

    मोहित करूँगा।

    तू भले ही सपने की डाली पर चढ़कर मुझे बस भूल जाए!

    मैं पुष्प बनकर आऊँगा तेरे पास!

    तू होगा यौवन छटामय कोई छैला, सुहावना,

    मैं हृदय पर तेरे बटन में बैठूँगा।

    तेरी उँगलियों की नोकों को बार-बार चूमूँगा।

    तेरा चित्त सभी दिशाओं में उमंग से भले ही भ्रमण करता हो;

    तुझे क्या पता कि तेरा हृदय रस पीने वाला तो एक मैं ही हूँ।

    मैं पुष्प बनकर आऊँगा तेरे पास!

    तू होगा कोई महाजन, लोकमान्य, गौरव-घटायुक्त,

    मैं तेरा कंठहार बनकर महकूँगा भरपूर सौरभ से।

    मैं आजानु, तेरे अंग पर झूमता हुआ,

    तेरे क़दमों के साथ ही आंदोलित होऊँगा।

    तेरा चित्त कोई उदार प्रेमल निश्चय में बह रहा होगा,

    उस प्रवाह में तेरे साथ समस्त विश्व में घूमूँगा।

    मैं पुष्प बनकर आऊँगा तेरे पास!

    तू होगा कोई मानवोत्तर देवचिति-संबुद्ध जन,

    मैं तेरे चरण में श्वेत जूही-पुष्प-पुंज बनकर ठहरूँगा।

    तेरे चरणों की रज में घुल-मिलकर उसे सुगंध से भर दूँगा।

    जब तेरी आत्मा परमात्मा से गुफ़्तुगू करने में लीन होगी,

    तब तेरा द्वाररक्षक धवलतम पावित्र्य धन्वा मैं बनूँगा।

    मैं पुष्प बनकर आऊँगा तेरे पास!

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 276)
    • रचनाकार : सुंदरम्
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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