पूर्णिमा में महानदी किनारे
purnaima mein mahanadi kinare
महानदी का किनारा।
तट के बरगद के
घने पत्ते
रोकते हैं चाँद को।
करीब बिजली के खंभे से सटकर
सोई है एक सफ़ेद गाय।
मील-भर चाँदनी
नदी के मोड़ से
पसरी हुई है मुहाने तक
ओर-छोर नहीं
बह आती है एक राजहंस-सी नाव,
सादे डैनों से खेकर पतवार।
ऐसा लगा,
उस पर बैठी है मेरी माँ,
(जो नश्वर शरीर में नहीं)
एक सफ़ेद साड़ी पहने
विराट् है वह जैसे एशिया।
झक-झक घोंघे और रेत...।
नाव चलती जा रही है।
पार कर एक-के-बाद एक
मीलों-फैली चाँदनी।
नदी का पठार खिलखिलाकर हँसने लगता है।
- पुस्तक : बसंत के एकांत ज़िले में (पृष्ठ 70)
- रचनाकार : सच्चिदानंद राउतराय
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
- संस्करण : 1990
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