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पूर्णिमा में महानदी किनारे

purnaima mein mahanadi kinare

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

सच्चिदानंद राउतराय

सच्चिदानंद राउतराय

पूर्णिमा में महानदी किनारे

सच्चिदानंद राउतराय

और अधिकसच्चिदानंद राउतराय

    महानदी का किनारा।

    तट के बरगद के

    घने पत्ते

    रोकते हैं चाँद को।

    करीब बिजली के खंभे से सटकर

    सोई है एक सफ़ेद गाय।

    मील-भर चाँदनी

    नदी के मोड़ से

    पसरी हुई है मुहाने तक

    ओर-छोर नहीं

    बह आती है एक राजहंस-सी नाव,

    सादे डैनों से खेकर पतवार।

    ऐसा लगा,

    उस पर बैठी है मेरी माँ,

    (जो नश्वर शरीर में नहीं)

    एक सफ़ेद साड़ी पहने

    विराट् है वह जैसे एशिया।

    झक-झक घोंघे और रेत...।

    नाव चलती जा रही है।

    पार कर एक-के-बाद एक

    मीलों-फैली चाँदनी।

    नदी का पठार खिलखिलाकर हँसने लगता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बसंत के एकांत ज़िले में (पृष्ठ 70)
    • रचनाकार : सच्चिदानंद राउतराय
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1990

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