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पुरानी प्रेयसियों के नाम

purani preyasiyon ke naam

अंचित

अंचित

पुरानी प्रेयसियों के नाम

अंचित

और अधिकअंचित

     

    पाब्लो नेरूदा की याद में

    बिचरता हूँ तुम्हारी याद के कमरों से, 
    आती है तुम्हारी याद रह रह अँधेरे से भरे गलियारों में— 
    किसी और देश में नितांत अकेला—सूँघता अकेलापन हवा में 
    सिहरता, रोम रोम जलता हुआ तुम्हारी याद में—नींद भी 
    बिरहा की तरह बजती है बहुत दूर—सिर्फ़ प्रतिध्वनि मेरे पास। 

    तुम्हारी कामनाएँ अकुलाती होंगी, किसी और की बाँहों में,
    टूटती होगी तुम,बिखरती होगी बन बन कर,कोई और शिल्पकार 
    बार-बार अपने अँगूठों से पोंछता होगा तुम्हारी नाक के पास तुम्हारा 
    चेहरा, कोई नाविक डूब-डूब जाता होगा तुम्हारे भीतर—
    तुम हो जाती होगी किसी और की दुनिया, किसी और का आसमान 
    किसी और की ज़मीन- सिर्फ़ किसी और की सबकुछ। 

    तब तुमको मेरी गंध याद आती होगी?
    जल ढुलकता होगा कोरों से जब, धूप पड़ती होगी देह पर जब
    पसीना उलझता होगा कपड़ों से जब, गति तुम्हारा आस्वादन 
    करती होगी जब, सन्नाटा मरता होगा बार बार समय की 
    प्रतीक्षा किए बिना जब, तुम्हारे मुँह पर मेरे स्वाद की स्मृति 
    किसी और के चुंबनों से आती होगी?

    तुम्हें अब भी मेरी कोई कविता याद है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : अंचित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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