पुल
pul
पुल कोलकाता का हो या काशी का
या फिर बस्ती का
फ़र्क़ नहीं पड़ता
'सत्ता' और 'पुल' दोनों की संरचना एक-सी है
भ्रष्टाचार का मैटेरियल दोनों में एक-सा है
इसलिए देश में पुल कहीं भी गिर जाता है
ध्यान देने की बात है
गिरने वाले सारे पुल
वाया सरकारी अधिकारी
जुड़े होते हैं
सत्ता और ठेकेदारों से
जनता बेवक़ूफ़ है
नाहक़ पुल से गुज़रकर
अपना जान दे देती है
जानते हुए भी कि पुल सरकारी है
कभी भी गिर सकता है
कवि हूँ
इसलिए चाहता हूँ
मानवता के हित में देश के सारे पुलों को
जल्द से जल्द
गिर जाना चाहिए
ताकि जान-माल की और अधिक हानि न हो
गिरने की कोई सीमा नहीं है
आदमी हो या पुल
देश में कहीं भी कोई भी गिर सकता है
किसी सीमा तक गिर सकता है
गिरना एक ख़ौफ़नाक क्रिया नहीं
एक इज़्ज़तदार सबब है
गिरने वाले सारे लोग इज़्ज़तदार हैं!
- रचनाकार : राज्यवर्द्धन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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