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पुल की तरह खुला है दिन

pul ki tarah khula hai din

वंशी माहेश्वरी

वंशी माहेश्वरी

पुल की तरह खुला है दिन

वंशी माहेश्वरी

और अधिकवंशी माहेश्वरी

    सुबह से तनकर

    बिछा है पूरा दिन

    पिछली रात के अनंत स्पर्श लिए।

    धरती से कुछ ऊपर

    आकाश से कुछ नीचे

    पुल की तरह खुला है दिन।

    तमाम अनुभूतियाँ

    स्मृतियाँ

    जुड़ेंगी

    इसके अंतिम छोर से

    रात की किरकिराती आँखों में

    पूरा दिन फिर आएगा

    हमेशा व्यतीत की तरह।

    फिर उद्भव

    फिर अंत

    मनुष्यों की यादगार की अंतहीन

    पुनर्जीवित गाथाएँ

    पुल से गुज़रेंगी

    कुछ पुल के ऊपर!

    कुछ पुल के नीचे!!

    स्रोत :
    • रचनाकार : वंशी माहेश्वरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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