लेखक से ज़्यादा ताक़तवर होता है प्रूफ़रीडर
वह पूरा का पूरा वाक्य बदल सकता है
उसके एक शब्द बदलने से मूल आशय ग़ायब हो सकते हैं
वह कुछ न करे—सिर्फ़ नुक़्तों को बदल दे
तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है
कितनी ही पाक-साफ़ हो पांडुलिपि
प्रूफ़रीडर ग़लतियाँ खोज ही लेता है
आप उसका कुछ नहीं कर सकते
वह शब्दों की दुनिया का पुराना खिलाड़ी है
वह रोज़ सैकड़ों पृष्ठ पढ़ता है
और लेखक की चूक पकड़ लेता है
अगर प्रूफ़रीडर नाराज़ हो जाए तो
बड़े से बड़े लेखक की धज्जियाँ उड़ा सकता है
इतिहासकारों को प्रूफ़रीडरों से सावधान रहना चाहिए
क्योंकि हुकूमत की नज़र प्रूफ़रीडरों पर ज़्यादा रहती है
वे सुविधानुसार प्रूफ़रीडरों को बदलते रहते हैं
शातिर प्रूफ़रीडर इतिहास की किताबों के हर्फ़
इस तरह बदलते हैं कि
लेखक को अंत तक पता नहीं चलता है
और पाठक उसे पढ़कर बर्बर काल में पहुँच जाते हैं
इसलिए अपने लिखे हुए को ठीक से जाँच लें
और विश्वसनीय प्रूफ़रीडर का चुनाव करें
- रचनाकार : स्वप्निल श्रीवास्तव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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