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प्रेमगली जो पैठा

premagli jo paitha

संतोष अर्श

संतोष अर्श

प्रेमगली जो पैठा

संतोष अर्श

और अधिकसंतोष अर्श

    घर से निकला जाने कैसे

    प्रेमगली जा पहुँचा

    भीतर-भीतर बरसों पिघला

    प्रेमगली जा पहुँचा

    बाहर साँवर भीतर उजला

    प्रेमगली जा पहुँचा

    गहरा होता गया है छिछला

    प्रेमगली जा पहुँचा

    प्रेमगली अति साँकर कबिरा

    प्रेमगली अति साँकर

    प्रेमगली से फिर निकसा

    प्रेमगली जो पैठा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संतोष अर्श
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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