प्रेम स्वयं कर लेगा तुम्हें वरण
prem swayan kar lega tumhein warn
जो न स्वीकारे प्रेम-निवेदन
उसके अस्वीकार को स्वीकारो तुम
न बनो बाधा उसकी राह में
तुम भी जीवन-पथ पर आगे बढ़ो
उसको भी आगे बढ़ने दो
प्रेम पकड़कर, जकड़कर रखना नहीं,
मुक्त करना है!
प्रेम कहीं नहीं जाता
आता है पुनः-पुनः लौटकर
किसी और रूप में
किसी और भेस में
बस उसे पहचानो तुम
उसे ही स्वीकारो तुम
तब प्रेम स्वयं कर लेगा तुम्हें वरण।
- रचनाकार : सौरभ मिश्र
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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