प्रेम हमेशा साधना समझकर करना
जैसे सूर्य उगने से पूर्व नहीं सोचता कि उसे ढलना भी है
पुष्प खिलने से पूर्व नहीं सोचते कि उन्हें झरना भी है
हरसिंगार महकते हुए चूमता है धरती
तितलियाँ पंख फैलाए मिलती हैं गले प्रकृति से
तुम भी खिलते रहना
वहाँ जहाँ कम दिखे स्नेह
प्रेम बिखरने से पहले ध्यान रहे
पुष्प झरने के पश्चात
दुनिया के पैरों तले मसला जाता है
यह व्यवसाय नहीं
इसलिए अपेक्षा मत रखना
उपेक्षा को मन पर मत लेना
बस प्रेम करते रहना
इसे सर्वत्र बिखेरते रहना
क्योंकि वे जो सच में रोना चाहते हैं
उन्हें रोने के लिए
मज़बूत कंधों की नहीं
नरम हथेलियों की ज़रूरत है
जिन पर मुख रख वे अपनी नज़रें छिपा सकें
उन सभी पीड़ाओं से
जो उनके अंतर में पनपी
वहीं पोषित हुईं
और उन्हीं में शहीद हो गईं
इसलिए प्रेम-साधना समझकर करना!
- रचनाकार : नेहा अपराजिता
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.