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प्रेम कविता

prem kawita

राजेंद्र धोड़पकर

राजेंद्र धोड़पकर

प्रेम कविता

राजेंद्र धोड़पकर

और अधिकराजेंद्र धोड़पकर

    मैं मिलूँगा तुमसे अतीत के एक चौराहे पर

    जिस वक़्त मेरी दुनिया में तुम नहीं थीं।

    कितना अकेला था मैं तुम्हारे बिना उस वक़्त में

    मुझे उस जगह तुम्हारी ज़रूरत है।

    हमने बहुत दुख झेले, बहुत अकेलापन सहा अकेले-अकेले

    तुमने देखीं कई गर्म आँधियाँ

    पत्तों को उड़ाकर ले जाती बंजर दोपहरों में

    उस वक़्त तुम्हारे सपने में एक बीज में

    दबा हुआ था मैं

    अब तुम मुझे उस जगह पा सकती हो।

    मैं पाना चाहता हूँ तुम्हें एक सुनसान समुद्र तट पर

    जहाँ मैं अक्सर पाता था अपने आपको अकेला

    तेल और बारूद की गंध तैरती रहती थी बोझिल हवा में

    मुझे साँस लेने के लिए तुम्हारी ज़रूरत महसूस होती थी।

    इस वक़्त जबकि भविष्य एक विशाल हरे घास के मैदान

    की तरह हमारे सामने फैला हुआ है

    हमारे तलुवों में खिल रहे हैं छोटे-छोटे घास के फूल

    लेकिन बहुत दूरी तय करके हम यहाँ आए हैं

    हमारे अतीत में बहुत सारी ख़ाली जगहें साँय-साँय करती हैं

    पहले हमें एक दूसरे को उन जगहों पर पाना है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उर्वर प्रदेश (पृष्ठ 67)
    • संपादक : अन्विता अब्बी
    • रचनाकार : राजेंद्र धोड़पकर
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2010

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