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प्रेम और राजनीति

prem aur rajaniti

कुमार मंगलम

कुमार मंगलम

प्रेम और राजनीति

कुमार मंगलम

और अधिककुमार मंगलम

    (एक)

    धरती घूमती है अपने अक्ष पर

    और उसके साथ

    घूमता है आकाश

    उसके विपरीत

    धरती के साथ-साथ

    (दो)

    जब प्रेम गहन होता है

    तो सीधे रेख में नहीं

    तिर्यक नहीं

    विपरीत दिशाओं में

    चलता है

    (तीन)

    विपरीत का विपर्वय

    तिर्यक का सीधी रेख में होना

    प्रेम में किया गया

    समझौता भर है

    सरकार की धूरी पर

    ओलर जाते हैं मतदाता

    सरकार का प्रेम

    हर पाँच साल बाद आने वाला

    रस्मी त्यौहार है

    कंद्र पर नहीं

    परिधि पर रह कर जाना

    जा सकता है

    प्रेम और राजनीति

    प्रेम की राजनीति

    कहीं भी रह कर नहीं जाना जा सकता

    स्रोत :
    • पुस्तक : पूर्वग्रह 166-67 (पृष्ठ 219)
    • संपादक : प्रेमशंकर शुक्ल
    • रचनाकार : कुमार मंगलम

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