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प्रणय का पहाड़ा

pranay ka pahaDa

ज्योति पांडेय

ज्योति पांडेय

प्रणय का पहाड़ा

ज्योति पांडेय

और अधिकज्योति पांडेय

    रात के उस एक पहर में बस हम तुम होते हैं!

    जब घड़ी की टिक-टिक अपनी नोक पर समय को रखकर

    क़दम-क़दम ऊँघती सरकती है।

    उसकी जम्हाई में समाते जाते हैं,

    बिस्तर, कमरे, घर, मोहल्ले

    शहर, देस, समंदर, पर्वत…

    फिर पृथ्वी और कई छोटे-बड़े ग्रह-उपग्रह भी…

    उसी पहर में

    ‘हम’

    प्रणय का पहाड़ा

    और काम का ककहरा

    साथ-साथ पढ़ रहे होते हैं…

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्योति पांडेय
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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