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पिता की वर्णमाला

pita ki warnamala

ओम नागर

ओम नागर

पिता की वर्णमाला

ओम नागर

और अधिकओम नागर

    पिता के लिए

    काला अक्षर भैंस बराबर

    पिता नहीं गए कभी स्कूल

    जो सीख पाते दुनिया की वर्णमाला

    पिता ने कभी नहीं किया

    काली स्लेट पर

    जोड़-बाक़ी, गुणा-भाग

    पिता आज भी नहीं उलझना चाहते

    किसी भी गणितीय कड़े में

    किसी भी वर्णमाला का कोई अक्षर कभी

    घर बैठे परेशान करने नहीं आया

    पिता को

    पिता

    बचपन से बोते रहे हैं

    हल चलाते हुए

    स्याह धरती की कोख में शब्द बीज

    जीवन में कई बार देखी है पिता ने

    खेत में उगती हुई पंक्तिबद्ध वर्णमाला

    पिता की बारहखड़ी

    आषाढ़ के आगमन से होती है शुरू

    चैत्र के चुकतारे के बाद

    चंद बोरियों या बंडे में भरी पड़ी रहती है

    शेष बची हुई वर्णमाला

    साल भर इसी वर्णमाला के शब्दबीज

    भरते रहे हैं हमारा पेट

    पिता ने कभी नहीं बोई गणित

    वरना हर साल यूँ ही

    आखा-तीज़ के आस-पास

    साहूकार की बही पर अँगूठा चस्पाँ कर

    अनमने से कभी घर नहीं लौटते पिता

    आज भी पिता के लिए

    काला अक्षर भैंस बराबर ही है

    मेरी सारी कविताओं के शब्द-युग्म

    नहीं बाँध सकते पिता की सादगी

    पिता आज भी बो रहे हैं शब्दबीज

    पिता आज भी काट रहे हैं वर्णमाला

    बारहखड़ी आज भी खड़ी है

    हाथ बाँधे

    पिता के समक्ष।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ओम नागर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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