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पिता की तस्वीर की जगह

pita ki taswir ki jagah

उमा शंकर चौधरी

उमा शंकर चौधरी

पिता की तस्वीर की जगह

उमा शंकर चौधरी

और अधिकउमा शंकर चौधरी

    जब पिता की मृत्यु हुई थी

    और जब उनकी अधेड़ उम्र की लाश

    घर के आँगन में पड़ी थी

    तब किसी ने भी यह सोचा नहीं था कि

    ज़िंदगी में एक दिन ऐसा भी आएगा जब हम उन्हें भुला देंगे

    पिता के बग़ैर भी क्या हम ज़िंदा रह सकते हैं

    ऐसा माँ के साथ हम सब बच्चे तब सोचा करते थे

    तब बहुत दिनों तक हमें पिता बहुत याद आए थे

    पिता का वह आराम कुर्सी पर झूलना

    पिता का गमछा

    पिता की घुड़की

    पिता की वह ख़ामोशी

    रोज़ सुबह-सुबह नीम का पानी

    पिता की आँखों के डर से ही हम बच्चे पीते थे

    उनका वह रोज़ दही से लस्सी बनाना

    और अपनी पीठ पर रोज़ हम बच्चों को बैठाना

    पिता जब जीवित थे सब्ज़ी में कभी नमक कम नहीं हुआ

    और ही कम हुई माँ के चेहरे की मुस्कुराहट

    पिता के निधन के बाद

    सबसे पहले हवा में पैठे जीवाणुओं ने हम पर हमला किया

    फिर चापाकल से पानी की धार छोटी पड़ने लगी

    हमारे घर की चौहद्दी छोटी हुई

    हमारा बचपन तब खेलने में कम

    खुली हवा से साँस लेने लायक़ कणों को चुनने में ज़्यादा बीता

    तब पिता बहुत याद आए जब

    माँ ने अपना वह आख़िरी गहना बेच दिया

    जिसे मेरे कंजूस पिता ने माँ के रूठने पर बनवा दिया था

    पिता का सामान धीरे-धीरे घर से विस्मृत होता चला गया

    पिता का दाँत खोदने वाला ख़ैरका

    पिता का गमछा

    पिता के बही खाते

    और फिर उनकी वह नायाब जादू की डिब्बी

    जिसमें वे एक नया, दू नया पैसे के साथ-साथ

    ताबीज, चूरन, कीलें और जाने क्या-क्या रखा करते थे

    हमारा घर छोटा होता चला गया

    हमारा बचपन ख़त्म होता चला गया

    और पिता का सामान लुप्त होता चला गया

    ज़्यादा दिन नहीं बीते जब

    पिता हमारे साथ सिर्फ़ उस तस्वीर में रह गए

    जो हमारे बैठक वाले कमरे में टँगी थी

    उस तस्वीर में पिता जिस कुर्सी पर बैठे हैं

    वह कुर्सी हमें पिता के जीवित समय

    और उनकी जीवंतता की बहुत याद दिलाती है

    उस तस्वीर से झाँकती पिता की आँखें

    हमें पिता को भूलने नहीं देती हैं

    लगभग साथ-साथ जवान हुईं हम तीन बहनों की शादियाँ

    माँ के सीने पर एक पत्थर की तरह थीं

    वर्ष गुज़रते रहे और माँ, पिता की उसी तस्वीर के सामने बैठ

    अपनी बेटियों की शादियाँ की दुआएँ माँगती रहीं

    तब हम उस ख़ाली कमरे में माँ को अकेले

    छुपकर देखते और पिता को बहुत याद करते

    ऐसा लगता जैसे पिता की तस्वीर से देखती वे आँखें

    एक दिन सारी समस्याओं का हल ढूँढ़ लेंगी

    लेकिन लड़ते-लड़ते एक दिन माँ हार गईं

    माँ ने अपने ही हाथों से उस तस्वीर को

    घर के कबाड़ हिस्से में यह कहते हुए डाल दिया कि

    मृत व्यक्ति की तस्वीर टँगने से नए रिश्ते नहीं जुड़ते

    तब माँ बहुत कठोर थीं

    और हम पस्त हो चुके थे

    पिता के सामान के बाद,

    पिता की आख़िरी तस्वीर के हटने ने

    अब हमारी ज़िंदगी से लगभग पिता को बाहर कर दिया था

    शायद माँ ठीक थीं

    नए रिश्ते बने

    घर समृद्ध हुआ

    घर की चौहद्दी फिर बढ़ने लगी

    लेकिन पिता फिर कभी उस घर में जगह नहीं पा पाए

    माँ ने नए रिश्तों की दुहाई में पिता को जो घर-निकाला दिया

    वह कभी ख़त्म नहीं हो पाया

    इस नए घर में, जिसमें फ़र्नीचर का काम पाश्चात्य शैली का है

    उसमें भी पिता की तस्वीर की कोई जगह नहीं है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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