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पिता के जाने के बाद

pita ke jane ke baad

नीरज नीर

नीरज नीर

पिता के जाने के बाद

नीरज नीर

और अधिकनीरज नीर

    वृक्ष के उखड़ने का शोक

    सबसे ज़्यादा

    उस किसान को नहीं होता

    जो खाता है उसका फल

    बल्कि, उस चींटी को होता है

    जिसने बनाई होती है

    वृक्ष की छाया में बाँबी।

    वृक्ष के उखड़ते ही

    दरक जाता है उसका घर

    मिट जाता है

    एक अदृश्य, अभौतिक घेरा,

    जिसके भीतर वे महसूस करती हैं

    ख़ुद को सुरक्षित...

    पिता होते हैं सख़्त मिट्टी की मोटी परत

    जिसके नीचे गड़ी होती है

    मज़बूती से

    आदमी की जड़ें...

    पिता के जाते ही

    आदमी खड़ा होता है

    नंगे सर,

    तपते सूरज के नीचे

    अपनी परछाई में

    तलाशते हुए एक टुकड़ा छाँव...

    ज़िंदगी की विशालता

    खारेपन को जन्म देती है।

    जीवन का समंदर

    वापस लौट जाना चाहता है,

    पहाड़ों के पास बार-बार

    पिता के कंधों पर होकर सवार

    उनकी उँगलियाँ थामे

    नन्हें-नन्हें क़दमों के साथ

    मीठे पानी के छोटे सोतों की ओर...

    पिता!

    अब जब शेष है

    स्मृति के कोठार में

    आपकी छाप

    मैं अपने आप को महसूस करने लगा हूँ

    अपनी उम्र से बड़ा

    धीमे-धीमे पहाड़ की ओर

    क़दम बढ़ाते हुए...

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीरज नीर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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